दमदार शख्सियत अर्जुन का अचूक निशाना

दमदार शख्सियत अर्जुन का अचूक निशाना

News Agency : नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में अर्जुन मुंडा (Arjun Munda) को बतौर केंद्रीय मंत्री शामिल कर भाजपा (BJP) ने झारखंड (Jharkhand) में एक साथ कई मोर्चों को साधने की कोशिश की है। अर्जुन मुंडा लोकप्रिय और प्रभावशाली नेता हैं, जनजातीय समाज का तो वे प्रतिनिधित्व करते ही हैं। भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में मुंडा की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश करेगी।मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मुझे देश की सेवा का अवसर मिला। प्रधानमंत्री जी ने मुझ पर जो भरोसा जताया है, मैं उस पर खरा उतरने का प्रयास करुंगा।लोकसभा चुनाव में जनजातीय सीटों पर एनडीए (NDA) और महागठबंधन (Mahagathbandhan) में कांटे की लड़ाई हुई थी। पांच जनजातीय सीटों में तीन भाजपा के कोटे में गईं तो दो महागठबंधन के। आगे विधानसभा चुनाव है, जाहिर है जनजातीय सीटों पर आगे भी कुछ ऐसे ही आसार बन सकते हैं। मुंडा को मंत्री बनाने से आदिवासी समाज के बीच बड़ा संदेश गया है।जिसका असर आने वाले विधानसभा की 28 जनजातीय सीटों पर देखने को मिल सकता है। गैर आदिवासी सीटों पर तो मुंडा का कुछ हद तक प्रभाव है ही। वहीं, झारखंड से चुनकर राज्यसभा गए मुख्तार अब्बास नकवी को भी कैबिनेट का दर्जा दिया गया है। नकवी के मंत्री बनने से राज्य के अल्पसंख्यक समुदाय के बीच एक मैसेज जाएगा।झारखंड की राजनीति में शुरू से ही कोल्हान प्रमंडल का दबदबा रहा है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में बतौर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के शामिल होने से कोल्हान का पलड़ा राज्य के अन्य प्रमंडलों से कहीं भारी हो गया है। मुख्यमंत्री रघुवर दास और राज्य सरकार के मंत्री सरयू राय इसी क्षेत्र से आते हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा भी कोल्हान से ही हैं।विधानसभा चुनाव की दृष्टिकोण से यह माना जा रहा था कि इस बार प्रधानमंत्री की कैबिनेट में संताल को प्रतिनिधित्व अवश्य मिलेगा। झामुमो के शीर्ष नेता शिबू सोरेन को हारने वाले सुनील सोरेन और जीत की हैट्रिक लगाने वाले निशिकांत दुबे का नाम चर्चा में भी था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। संताल प्रमंडल में 18 विधानसभा सीटें आती हैं और यह सीटें एनडीए के लिए अहम हैं।पिछली केंद्रीय कैबिनेट में उत्तरी और दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल को जयंत सिन्हा और सुदर्शन भगत के रूप में प्रतिनिधित्व मिला था। केंद्रीय मंत्रीमंडल में झारखंड से सीमित लोगों को ही जगह दी जा सकती थी, ऐसे में सभी प्रमंडलों को अपेक्षित नेतृत्व मिलना मुश्किल है।

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